Baksh deta hai “Khuda” unko ..!!!

“बक्श देता है ‘खुदा’ उनको, … !
जिनकी ‘किस्मत’ ख़राब होती है … !!

वो हरगिज नहीं ‘बक्शे’ जाते है, … !
जिनकी ‘नियत’ खराब होती है… !!”

न मेरा ‘एक’ होगा, न तेरा ‘लाख’ होगा, … !
न ‘तारिफ’ तेरी होगी, न ‘मजाक’ मेरा होगा … !!

गुरुर न कर “शाह-ए-शरीर” का, … !
मेरा भी ‘खाक’ होगा, तेरा भी ‘खाक’ होगा … !!

क्या करामात है ‘कुदरत’ की, … !
‘ज़िंदा इंसान’ पानी में डूब जाता है और ‘मुर्दा’ तैर के
दिखाता है … !!

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